भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कथिकेरऽ आसन कथिकेरऽ सिहासन / अंगिका लोकगीत
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:26, 27 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKCatAngikaRachna}} <poem> कथिकेरऽ आसन<r...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
♦ रचनाकार: अज्ञात
कथिकेरऽ आसन<ref>किस चीज का</ref> कथिकेरऽ सिंहासन, किए किए नाम धराबै<ref>धारण करती है</ref> दुरगा माय हे।
सोना केरऽ आसन रतन सिंहासन, कलिका नाम धराबै दुरगा माय हे॥1॥
कौने फूल ओढ़न कौने फूल पहिरन, कौने फूल गलेहार दुरगा माय हे।
बेली फूल ओढ़न, चमेली फूल पहिरन, अरुहुल फूल गलेहार दुरगा माय हे॥2॥
कथि केरऽ थारी, कथि केरऽ बाती, कौने आरती उतारै दुरगा माय हे।
सोने केरऽ थारी, कपूर के बाती, सेवक आरती उतारै दुरगा माय हे॥3॥
शब्दार्थ
<references/>