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पातर से गहिली देबी / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

पातर से गहिली<ref>एक देवी</ref> देबी, मूठी<ref>एक मुट्ठी</ref> एक डरबा<ref>कमर</ref>।
केस मोरा मौली-मौली<ref>झूमना; झुकना</ref> जाय, गहिली देबी जसोमंती हे॥1॥
कहँमाहं उपजल झालरी<ref>झालर की तरह लटका हुआ</ref> गुअबा<ref>कसैली</ref>, कहँमा डाँटरियो<ref>डंटीदार पान</ref> पान हे।
मोरँगहिं<ref>मोरंग में; मोरंग पूर्वी नेपाल का एक जिला है</ref> उपजल झालरी गुअबा, भोजपुर डाँटरियो पान हे॥2॥
सोने काती<ref>एक प्रकार का चाकू, कत्ता</ref> कतरब<ref>काटूँगा</ref>झालरी गुअबा, रूपे काती डाँटरियो पान हे।
पाँचहिं पान केरा बीरिया<ref>बीड़ा</ref> लगाबल, सोना रे खरिक<ref>तिनका; सलाका; खरिका</ref> दिहलौं चून हे॥
बहे पान खायती में गहिल दुलारी, रँगल बतीसो मुख दाँत हे॥3॥
घोड़बा चढ़ल आबै भैरब भैया, आगे बहिनो, देखे देहो दाँतहुँक<ref>दाँत की</ref> जोत हे।
कैसे हमें देखै देबै दाँतहुँक जोतिया, अरे भैया, मोरा घर जातरी<ref>यात्री</ref> बहूत हे॥4॥
जस देहो जस देहो, गहिल दुलरिया, तोरा जस टेकल<ref>टेकना; टिका है</ref> संसार हे।
गहिली देबी बड़ी जसोमंती हे॥5॥

शब्दार्थ
<references/>