भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हे बोलाबहो दादी सोहागिन / अंगिका लोकगीत

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:33, 27 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKCatAngikaRachna}} <poem> विवाह के पहल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

विवाह के पहले बेटी के सौंदर्य के निखार के लिए उबटन लगाये जाने तथा इस विधि को सम्पन्न के निमित्त घर की महिलाओं को बुलाये जाने का उल्लेख इस गीत में हुआ है।

हे बोलाबहो<ref>बुलाओ</ref> दादी सोहागिन।
आब<ref>अब</ref> सौख<ref>शौक</ref> पुरलै<ref>शौक</ref> दादी॥1॥
तोरि पोती बैठल उबटन।
हे दुलारी पोती बैठल उबटन॥2॥
हे बोलबहो अम्माँ सोहागिन।
आब सौख पुरलै अम्माँ॥3॥
तोरि बेटी बैठल उबटन।
हे दुलरइती धिआ बैठल उबटन।
हे एकलौती धिआ बैठल उबटन॥4॥

शब्दार्थ
<references/>