♦ रचनाकार: अज्ञात
विवाह के पूर्व कन्या के सौंर्य के निखार के लिए जौ या गेहूँ के आटे, हल्दी, सरसों, तिल, चिरौंजी तथा अन्य सुगंधित द्रव्यों के सम्मिश्रण से उबटन बनाकर उसे लगाया जाता है। इस गीत में मंगल गाने तथा बेटी के शरीर के विभिन्न अंगों में उबटन लगाने का उल्लेख है।
निरखु हे दादी सोहागिन आजु, राजदुलारी के लागत उबटन।
धिआ पेयारी<ref>प्यारी</ref> के लागत उबटन॥1॥
मँगल सखि सब गाबहो<ref>गाओ</ref>, राधा पेयारी के लागत उबटन॥2॥
मुँहमा पसारू दुलारी बेटी, बेटी, लागत तेल फुलेल।
धिआ पेयारी के लागत उबटन, जब<ref>जौ</ref> रे गोहुम<ref>गेहूँ</ref> केरा उबटन॥3॥
हथबा पसारू दुलारी बेटी, लागत तेल फुलेल।
राजदुलारी के लागत उबटन।
निरखु हे अम्माँ सोहागिन आजु, धिआ पेयारी के लागत उबटन॥4॥
शब्दार्थ
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