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जब हे दुलरुआ पूता, बिआहे चलला / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

जब हे दुलरुआ पूता, बिआहे चलला।
बाबा मन परि गेल<ref>स्मरण हो आया</ref>, अम्माँ मन परि गेल।
नैन नीर भरि गेल हे॥1॥
आह अबसरिया रे गभरू, बाबा रहितौ<ref>रहते</ref> रे अपना।
बाबा जे रहितौ रे गभरू, सजैतौ बरिहेयतिया<ref>बारात; बाराती</ref>॥2॥
अम्माँ जे रहितौ रे गभरू, सजैतौ डाला<ref>बाँस की फट्ठियों का बुना हुआ गोलाकार एक प्रकार का पिटारा</ref> हे दौड़बा<ref>दौरा; बाँस की कमाचियों का बुना हुआ बड़ा टोकरा</ref>।
अहि अबसरिया रे गभरू, बहनोइया मन हे परि गेल॥3॥
अहि अबसरिया रे गभरू, बहिनी रहितौ हे अपना।
बहिनी जे रहितौ रे गभरू, रँजैतौ दूनू<ref>दोनों</ref> हे अँखिया।
बहनोइया जे रहितौ रे गभरू, पिन्हैतौ<ref>पहनाता</ref> जामा हे जोड़बा<ref>दुलहे के पहनने का एक रेशमी वस्त्र, जिसका नीचे का भाग लंबा घेरावदार और कमर के ऊपर की काट बगलबंदी सी होती है</ref>॥4॥

शब्दार्थ
<references/>