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सिरी किसुन चलले बिआह करे / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

प्रस्तुत गीत में विवाह हो जाने के बाद दुलहा अपनी सास से कोहबर-घर खोलने का अनुरोध करता है। सास अपनी बेटी को छिपाकर घर बंद करके बैठी है। दुलहा के अनुोध करने पर वह कहती है कि अभी तो मेरी बेटी नादान है, वह हँसना-बोलना भी नहीं जानती। दुलहा कहता है- ‘मैं भी तो अभी कमल के समान कोमल नवयुवक हूँ। अभी हम दोनों आपस में हँस-खेलेंगे।’

सिरी किसुन चलले बिआह करे, रिमझिम बाजन हे।
आहे, सखि सब मंगल गाबहो<ref>गाओ</ref>, गाबि सुनाबहो हे॥1॥
धाबैत धाबै लौबा<ref>नाई; हजाम</ref>, कि लौबा से बाम्हन हे।
आहे, गौरी के खबरी जनाब, कहाँ रामजी उतरत हे॥2॥
टुटली जे फाटली मड़ैया, कि देखै में सोहाबन हे।
आहे, कहाँ बहै पुरबा बतास, ओहिं रामजी उतरते हे॥3॥
झड़ोखहिं मुँह दै सासु परेखै हे।
अहे, कैसे चिन्हबै रघुनन्नन, आती उतारब हे॥4॥
गोड़े खड़ाऊँ सिरे मौरी<ref>मौर</ref>, पिन्हने पितम्मर हे।
आहे, मुखे सेॅ पाकल पान बहे, उहे रघुनन्नन हे॥5॥
एते जो जानतौं गे माइ, सीरी किसुन अइता हे।
अहे, सोने के थाल गढ़ाबितों, आरती उतारतों हे॥6॥
भेले बिहा पहे फाटल<ref>पौ फटना, तड़का होना</ref> कोइली बन बोलइ हे।
अहे, खोलूँ सासु बजड़ा<ref>बज्र की</ref> केबाड़, कि राम जैहें कोहबर हे॥7॥
कैसे हमें खोलब बाबू बजड़ा केबाड़ हे, कि रामे जैहें कोहबर हे।
आहे, धिआ मोरा लड़िका अबोध हाँसहुँ<ref>हँसना भी</ref> नहीं जानै हे॥8॥
तोहरियो धिआ सासु, लड़िका अबोध हे।
अहे, हमहुँ कमल केरअ फूल, दोनों मिलि बिहुँसब हे॥9॥

शब्दार्थ
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