भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कौनी बन बोलै कारी रे कोयलिया / अंगिका लोकगीत

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:37, 27 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKCatAngikaRachna}} <poem> कौनी बन बोलै...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

कौनी बन बोलै कारी रे कोयलिया, कौनी रे बन बोलै अमोल हे।
अहे, अमाँ कोठरिया में सीता बोलै, आब सिया रहली कुमारि हे॥1॥
बाबा बन बोलै कारी रे कोयलिया, भैया बनने बोलै अमोल हे।
आहे, अमाँ कोठरिया में सीता बोलै हे, आबे सिया रहली कुमारि हे॥2॥
अपनाहुँ जोगें बाबा समधी मेरैहऽ<ref>ढूँढ़ना, खोजना, मिलान करना</ref>, सिया के जोगे<ref>योग्य</ref> सीरी राम हे।
पंच कुटुमे<ref>कुटुंब</ref> जोगें लैहो बरियतिया, छकत जनकपुर देखि बरियात हे॥3॥
अपनाहुँ जोगें बेटी समधी मेरैलों, सिया के जोगें सीरी राम हे।
आहे, पंच कुटुम जोगें लैलों बरियतिया, छकल जनकपुर के लोग हे॥4॥
ऊँच कै मड़बा छरैहऽ जी बाबा, नीच के बेदिया पुरायन<ref>छवाना</ref> जी बाबा, नीच कै बेदिया पुरायन<ref>आटे, अबीर आदि से चौका बनवाना</ref> हे।
आहे, तकरो से<ref>उससे भी</ref> ऊँच लाली दरबजबा, छकत जनकपुर के लोग हे॥5॥
ऊँच कै मड़बा छरैलों गे बेटी, नीच कै बेदिया पुरायन हे।
आहे, तकरो सेॅ ऊँच कै लाली दरबजबा, छकल जनकपुर के लोग हे॥6॥
अस मन सेॅ सेनुर बेसाहिय जी बाबा, सामी दिहलै भरि माँग हे।
आहे, चुटकी सेनुरबा के कारन जी बाबा, छुटल जनकपुर के लोग हे॥7॥

शब्दार्थ
<references/>