भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घरऽ पिछुअरिया मे बेली के गछिया / अंगिका लोकगीत

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:58, 28 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKCatAngikaRachna}} <poem> फूलों की माल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

फूलों की माला पहन कर दुलहा ससुराल गया। वहाँ घोड़ा दौड़ाते समय उसके गले की माला टूट गई। उसने एक पानी भरने वाली से फूलों को चुनकर माला गूँथने का आग्रह किया। उस पनिहारिन ने कह दिया- ‘मैं क्यों फूल चुनने जाऊँ? इन फूलों को तुम्हारी माँ और बहनें तथा तुम्हारी दुलहिन माला गूँथेगी।’ दुलहे की माँ और बहन तो घर पर है और वह अपनी दुलहिन को पहचानता नहीं। वह अपनी सलहज से अपनी दुलहिन के विषय में जानकारी प्राप्त करना चाहता है। ऐसा लगता है कि उसे शंका हो गई है कि वह पनिहारिन ही उसकी दुलहिन है।

घरऽ पिछुअरिया में बेली के गछिया, बेलि फूले अधरतिया।
सेहो फूल तोड़े गेल बाबू जे दुलहा बाबू, तोड़ि चले ससुररिया॥1॥
बीच रे ससुरारि गामो<ref>गाँव</ref> घोड़िया दौड़ायल<ref>दौड़ाया</ref>, टूटि खसे<ref>गिर गया</ref> फुलहरबा।
पनिया भैरेतेॅ तोहें एजी पनभरनी, चूनि देहो फुलहरबा॥2॥
सोहो फूल चुनती मैयो रे बहिनियाँ, गाँथती लबी<ref>नई</ref> दुलहनियाँ
मैयो रे बहिनियाँ ओतेहिं<ref>वहीं</ref> तजलाँ, कैसन छै दुलहिनियाँ॥3॥
पलँग बेठल तोहें हे जी ननदोसिया, पातरि छै दुलहिनियाँ।
भनसा<ref>रसोई घर</ref> बैठल तोहें हे जी सरहोजनो<ref>साले की पत्नी</ref>, कैसन छै दुलहनियाँ॥4॥
पलँग सुतल तोहें हे जी ननदोसिया, सुनरी छै दुलहनियाँ॥5॥

शब्दार्थ
<references/>