भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

काँचियो बाँस केरऽ बासाँ घरऽ / अंगिका लोकगीत

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:59, 28 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKCatAngikaRachna}} <poem> रंग-विरंगे स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

रंग-विरंगे सजे-सजाये कोहबर को देखकर दुलहिन आत्म-विभोर हो गई। वह सुपारी, पान आदि एकत्र करने लगी। इन चीजों का उपभोग पति के साथ करके वह अपनी सहेलियों को भी गर्व से सुना आई। कोहबर में प्रथम-मिलन का आनंद वह अपनी सहेलियों से कैसे छिपा कर रखे, जिन्हें अभी तक इस आनंद का अनुभव तक नहीं हुआ है। यह गीत पूर्वी पूर्णियाँ से प्राप्त हुआ है। इसकी भाषा पर बँगला का थोड़ा-थोड़ा प्रभाव है।

काँचियो<ref>कच्चे</ref> बाँस केरऽ बासाँ<ref>रहने का घर</ref> घरऽ, आँहो सफेदे<ref>चूने से; सफेद चीज से</ref> धोरैबै<ref>धुलवाऊँगा; पुतवाऊँगा</ref> लाया कोहबर हे॥1॥
बलेमू घरें लाया<ref>नया</ref> कोहबर, झमके लागल लाया कोहबर हे।
बेहौंसे<ref>बिहँसने लगा</ref> लागल लाया कोहबर हे॥2॥
कथि काति<ref>सरौता-कत्ता; एक प्रकार का छुरा</ref> कतरबै झालरी<ref>झालरदार</ref> गुअबा<ref>कसैली</ref>, कथि काति कतरबै डाँटियो<ref>डंडीदार</ref> पान हे।
सोना काति कतरबै झालरी गुअबा, रूपा काति कतरबै पान हे॥3॥
कौने साजी तोरबै में झालरी गुअबा, कोने साजी तोरबै डंटी पान हे।
सोना साजी तोरबै झालरी गुअबा, रूपा साजी तोरबै डंटी पान हे॥4॥
कौने मोरा खाइतै झालरी गुअबा, कौने मोरा खाइतै डंटियो पान हे।
बलेमु मोरा खाइतै झालरी गुअबा, आँहो हमैं धानि खैबै डंटी पान हे॥5॥
हँसी पूछू बिहँसी पूछू कनियाँ सोहागिनी, कहाँ में रैगौले बतीसो कोढ़ा दाँत हे।
कोहबराँ खैल्हाँ हे परभु झालरी गुअबा, कोहबरे खैल्हाँ पान हे।
कोहबरे रँगैलिऐ बतिसो कोढ़ा दाँत हे॥6॥

शब्दार्थ
<references/>