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गे माई, आजु सुमगल दिन / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

सखियों द्वारा फूल एकत्रित कर हार गूँथने, उसे दुलहा के हाथ में देने, हार को दुलहिन के गले में पहनाने के लिए प्रेरित करने और फिर सखियों द्वारा दोनों को कोहबर-घर में प्रवेश करा देने का उल्लेख इस गीत में हुआ है। कोहबर में प्रवेश करने पर दुलहिन की माँ खिड़की से देखती है कि उसकी बेटी प्रथम मिलन के समय केले के पत्ते की तरह काँप रही है। लोक मानस ने दुलहिन के लिए सीता की तथा उसकी माँ के लिए मनायिन की कल्पना की है, जो इतिहास-विरुद्ध है।

गे माई, आजु सुमंगल दिन, चंपा फूल तोरू<ref>तोड़ो</ref> गय हे।
कौने डारी तोरब बेली चमेली फूल, कौने डारी चंपा फूल हे।
सोने डारी तोरब बेली चमेली फूल, रूपे डारी चंपा फूल हे।
सोने डारी तोरब बेली चमेली फूल, रूपे डारी चंपा फूल हे॥1॥
कौने सूत गाँथब बेली चमेली फूल, कौने सूत चंपा फूल हे।
हार लिअउ<ref>लीजिए</ref> हार लिअउ ननुआ<ref>बच्चे के लिए प्यार का संबोधन</ref> से दुलहा बाबू, दिऔ<ref>दीजिए</ref> गय सीता पहिराय हे॥2॥
दस पाँच सखि मिलि घर कै देलन<ref>कर दिया</ref>, ठोकि देलन सोबरन<ref>स्वर्ण</ref> केबार हे।
खिड़की ओठघाय<ref>खिड़की के पल्ले को थोड़ा बंद कर देना; जिससे बाहर कुछ-कुछ दिखाई पड़े और उसे कोई बाहर से नहीं देखे</ref> ताकै<ref>देखती है</ref> माइ मनायनी, देखै धिया के सोहाग हे।
जैसन काँपै केरा<ref>केला</ref> के झालरी<ref>झालरदार, केले के फटे हुए पत्ते</ref>, तेसन धिया के सरीर हे॥3॥

शब्दार्थ
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