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कोयली जे बोलै आम बिरिछिया / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

जिस प्रकार कोयल का आम के पेड़ पर और भँवरे का कचनार के फूल पर निवास रहता है, उसी प्रकार दुलहा ससुराल में शोभित है। ससुराल से लौटने पर माँ ने सास, सलहज, साली और पत्नी के विषय में पूछा। दुलहे ने ससुराल के लोगों की प्रशंसा करते हुए कहा- ‘माँ, तुम्हारी तरह सास, भाभी की तरह सलहज, बहन की तरह साली और जीरे की तरह मेरी पत्नी है, जो बीड़े लगाकर मुझे देती थी।’ अपने लड़के के मुख से उसके ससुरालवालों की प्रशंसा माँ को अच्छी नहीं लगी। उसने कहा- ‘बेटा, नव महीने तक मैंने तुम्हें गर्भ में रखकर सारा कष्ट झेला और अपना दूध पिला कर तुम्हें पाला तो कुछ नहीं, लेकिन दो दिनों के लिए ससुराल गये तो हम लोगों को भूलकर ससुराल वालों के हो गये और उन लोगों की तुलना हम लोगों से करने लगे।’ माँ की रुखाई को देखते हुए बेटे ने माँ को समझाया- ‘माँ अगर तुम्हें बुरा लगता है तो मैं तुम्हारी शपथ खाकर कहता हूँ कि कभी ससुराल नहीं जाऊँगा।’ इस उत्तर से माँ का सारा क्रोध शांत हो गया। उसने बेटे को समझाते हुए कहा- ‘नहीं बेटा, ऐसा नहीं कहतेॅ तुम्हारी ससुराल की रोज वृद्धि हो और तुम रोज ससुराल जाते रहो।’ कोई माँ कैसे अपने पुत्र के आनंद में बाधक बन सकती है?

कोयली जे बोलै आम बिरिछिया, भँवरा बोलै कचनार हे।
नूनू बाबू बोलै ससुर नगरिया, हाथ गुलेल मुख पान हे॥1॥
केकरा ऐसन पूता सासु तू पाओल, जिनि सासु रसोइया बनाय हे।
केकरा ऐसन पूता सरहोज पाओल, जिनि सरहोजी पलँग वोछाय<ref>बिछाती है</ref> हे॥2॥
केकरा ऐसन पूता सारी तू पाओल, जिनि सारी हुखेबा<ref>पंखा</ref> डोलय हे।
केकरा ऐसन पूता धनि तहुँ पाओल, जिनि धनि बिरिया<ref>बीड़ा, पान का</ref> लगाय हे॥3॥
तोहर सन हे अम्माँ सासु पाओल, जिनि सासु रसोइया बनाय हे।
भौजी ऐसन अम्माँ सरहोजी पाओल, जिनि सरहोजी पलँग वोछाय हे॥4॥
बहिनी ऐसन अम्माँ सारी हम पाओल, जिनि सारी हुखेबा डोलाय हे।
जिरबा ऐसन अम्माँ धनि हम पाओल, जिनि धनि बिरिया लगाय हे॥5॥
नबहिं मास रे पूता उदर में राखल, दसो सोआ<ref>स्रोत</ref> दूध पिलाय हे।
दूधबा के गुनो न पूता तहुँ राखलें, झटसे<ref>जल्दी ही</ref> चिन्हलें ससुरारि हे॥6॥
तोहरो किरिया गे अम्माँ राम दोहैया, अब न जायब ससुरारि हे।
जुग जुग बाढ़ो पूता तोरो ससुरारी, नित जाहो नित आहो हे॥7॥

शब्दार्थ
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