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गोखुला नगर से ऐलै भैया सोनरबा / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

लड़की ने सोनार से सोने की झलकदार बिंदुली गढ़वाई। वह मन-ही मन ससुराल जाने की तैयार कर रही थी। इसी बीच उसकी ससुराल से दिन निश्चित करने की खबर आ गई। वह खेलना छोड़कर घर के लोगों से मिलने गई। वह दिन भेजने वाले और उसे स्वीकार करने वाले अपने पिता को भी भला-बुरा कहने लगी। उसकी विदाई के लिए उसकी माँ ‘पउँती-पिटारी’ साँठने लगी, पिता दहेज में गाय देने की तैयारी करने लगा और भाई डोली ठीक करने। निश्चित समय पर उसे ले जाने के लिए सजे-सजाये डोली में बत्तीस कहार लग गये।

पहले वह पति से मिलने की उत्कट अभिलाषा से ससुराल जाने की तैयारी करती है; लेकिन समय आने पर अपने पिता-माता, भाई-भाभी, बहन और परिवार के अन्य सदस्यों के वियोग से दुःखी होती है और उसकी मनःस्थिति बदल जाती है।

गोखुला नगर से ऐलै भैया सोनरबा, बैठी रे गेलै बाबा के दुआर हे।
एक रती सोना देबौ भैया रे सोनरबा, गढ़ी देहो बिंदुली हमार हे॥1॥
ऐसन बिंदुलिया गढ़ि दिहे रे सोनरबा, झलकैते जैते ससुरारि हे।
खेलते में रहिऐ<ref>रही थी</ref> रामा सुपती मउनियाँ, अझटे<ref>अकस्मात्</ref> में ऐलै नियार<ref>विदाई का दिन</ref> हे॥2॥
फेंकि देलिऐ सुपती पटकि देलिऐ मउनियाँ, मिलै<ref>मिलने के लिए</ref> गेलिऐ कुल परिबार हे।
आरे, मिलि लेहो जुलि लेहो संग के सहेलिया, चित भेल जग सेॅ उदास हे॥3॥
कौने निरमोहिया रामा दिनमा भेजैलखिन<ref>भिजवाया</ref>, कौने निरमोहिया मानि लेल<ref>मान लिया; स्वीकृत कर लिया</ref> हे।
कौने मोरा साँठथिन<ref>सहेजेगी</ref> पौंती पेटरिया<ref>सींक, मूँज और बाँस की बनी पिटारी, इन पिटारियों में लड़की को आवश्यक चीजें दी जाती हैं</ref>, कौने निरमोहिया धेनु गाय हे।
कौने निरमोहिया रामा चढ़न के डोलिया, कौने निमोहिया लेने जाय<ref>लिये जा रहा है</ref> हे॥4॥
ससुर निरमोहिया रामा दिनमा भेजैलखिन, बाबा निरमोहिया मानि लेल हे।
अम्माँ निरमोहिया साँठथिन पौंती पेटरिया, बाबा निरमोहिया धेनु गाय हे॥5॥
भैया निरमोहिया रामा चढ़न के डोलिया, सामी निरमोहिया लेने जाय हे।
लाली डोलिया सबुज रँग ओहरिया<ref>पालकी के ऊपर दिया जाने वाला परदा</ref>, लागि गेल बतीसो कहार हे॥6॥

शब्दार्थ
<references/>