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कौरव पाण्डव / लोकगीता / लक्ष्मण सिंह चौहान
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अब सुनु अंध धृतराष्ट्र केर रानी रामा।
जे पति अनुकूल मति बाली हो सांवलिया॥
दुरयोधन दुशासन छोट विकरणमा हो।
सब मिली गंधारी सौपुत हो सांवलिया॥23॥
दुरयोधन, दुशासन विकरण आदि रामा।
सौवो भैया कौरव, कहात हो सांवलिया॥
छमावान सुजन। शुशील मधु भाषीया हो।
राज काज करैय में निपुण हो सांवलिया॥
कौरव पाण्डव बीच युधिष्टिर योग रामा।
भोला भाला साधु सनरूप हो सांवलिया॥24॥
सुनी लेइ पापीयो कुटिल छुछुन्दर रामा।
कपटी कुजाती आरु लोभी हो सांवलिया॥
डींग हांकैय वाला आदि अवगुण के घरवा हो।
पाप के पिटारी दुरयोधन हो सांवलिया॥26॥