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द्रौपदी हास्य / लोकगीता / लक्ष्मण सिंह चौहान

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ऊँची रे महलिया में सुन्दर अटरिया हो।
दुरपदी सखी के संग खाड़ी हो सांवलिया॥
झांकती झरोखे लागी हंसती ठहाका मारी।
देखु आली गजब बहार हो सांवलिया॥
अंगुरी दिखा वैय अरु खिल खिल हंसैय रामा
देखी-देखी तीतल भींजल हो सांवलिया॥
शरम से सीरबा झुकावैय दुरयोधन रामा।
चुपचाप राजधानी लौटैय हो सांवलिया॥