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शंख नाद / लोकगीता / लक्ष्मण सिंह चौहान

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युध के बाजन बाजी गेलैय रन भमियो रामा॥टेक॥
अपनो अपनो शंख फूकैय कुरुसमलियां रामा॥
सीघासन सीना तानी फूंकि देबकै शंख रामा।
कौरबा में बुढ़ा दादाभीष्म हो सांवलिया॥
हुमरैय आकास रामा चमकैय बिजुरिया हो।
दुरयोधन मने मन खुश हो सांवलिया॥
सब फेरू सभे ठामा बाजैय एक बेरि रामा।
शंख नगाड़ा आरू ढ़ोल हो सांवलिया॥
मिरदंग शहनाई बाजैय गोमुख आदि बजबा हो।
युध के बाजन सभे बाजैय हो सांवलिया॥
होकरो शबद गमा दर दर खिड़ी गेलैय।
हाहाकार मचियो त गेलैय हो सांवलिया॥
हथिया-चिघारैय आरू घोड़बो भरकैय रामा।
रथपो जोतन हिन हिनाबैय हो सांवलिया॥
बचबो बूतरू रामा चिहुकि के गोदी फानैय।
माबीयो कांपली घर पैसैय हो सांवलिया॥
कौवा, बटेर आदि चिल्हियो चेंचाबैच रामा।
फारि फारि लोल मरराबैय हो सांवलिया॥
‘लछुमन’ युध के बाजन सुनी दाई माई।
दंतवा से अगुरी कटाबैय हो सांवलिया॥
धौले धौले घोड़बा जोतल बेर रथबा हो।
वाही पर माधव पारथ हो सांवलिया॥
बैठल बैठल दुवो अपनो अपनो रामा॥
सुन्दर अनूप शंख फूंकैय हो सांवलिया॥
पाँचजन्य फूँकैय रामा भगबनमा हो।
देवदन्त अरजुन फूँकैय हो सांवलिया॥
विकट कठोर काम करैय भीम सेनमां हो।
पौण्ड नाम भारी शंख फूँकैय हो सांवलिया॥
कुन्ती पुत्र राजा युधिष्ठिर तबे फूँकैय रामा।
अनंत विजय नाम शंख हो सांवलिया॥
नकुल सुघोष फूँकैय, फूँकैय सहदेव रामा।
मणिपुष्पक जिनकर नाम हो सांवलिया॥
बढ़ही सुधर धनुधारी काशीराज रामा।
महारथी शिखन्डी, धीठ दुमन हो सांवलिया॥
विराट, अजेय आरू सातकि दु्रपद समर बीर।
दु्रपदी के सभे लरिका फूँकैय हो सांवलिया॥
सुभद्रा-तनय अभिमन्यु महा बाहु रामा।
अपन अपन शंख फूँकैय हो सांवलिया॥
प्रलय तूफान शब्द धरती अकसवा हो।
गुंजी गेलैय हाहाकार सोर हो सांवलिया॥
टूक टूक होबै लगलैय कौरबा के हीयरा हो।
मुहबों में धान फूटी जाय दो सांवलिया॥
दुवो ओर सेनमा के शंख-नाद कही रामा।
आगे के बिरतान संजय कहैय हो सांवलिया॥