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तुम नहीं दिखते / महेश सन्तोषी

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तुम नहीं दिखते, मन दुखता तो है।
लगता है चारों तरफ कोई कमी-सी है,
ज़िन्दगी थोड़ी कहीं, ठहरी, थमी-सी है,
दुश्मनी ही सही, तुमसे कोई रिश्ता तो है।
तुम नहीं दिखते, मन दुखता तो है।

कहाँ से मिला हमें यह मोम जैसा मन,
पूजा, अर्चना में ही बुझ गये हम,
झेलते हैं आँच, कोई विवशता तो है।
तुम नहीं दिखते, मन दुखता तो है।

बिना आग के, जल के,
कभी आग पर चलके,
पास आ ही गये हम,
अस्ताचल के,
बुझा-बुझा ही सही दिल
तुमसे धड़कता तो है।
तुम नहीं दिखते, मन दुखता तो है।