Last modified on 2 मई 2017, at 12:18

अविवाहित का दर्द / महेश सन्तोषी

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:18, 2 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश सन्तोषी |अनुवादक= |संग्रह=हि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अभावों की उम्र कुछ भी क्यों न हो,
उम्र के अभावों की बात कोई क्यों नहीं कहता?
कम नहीं होती किसी अविवाहिता की आधी तन में, आधी मन में छिपी व्यथा;
उस लड़की ने खुद तो नहीं कही, पर, उसकी भरी-भरी देह ने तो कही,
उसकी व्यथाओं की सारी कथा!

कौन उठाएगा विवाह का खर्च जब घर के रोज के सारे खर्च नहीं चलते?
माँ-बाप को फिक्र तो रहती है दिन-रात, पर,
सुबह न पाँव आगे बढ़ते, न शाम को पीछे हटते;
ज़मीर बेचते तो कोई और बात होती, पर,
अब उनके पैर थक गये हैं सब्जियाँ बेचते-बेचते!

डरते हैं कहीं ज़िन्दा न जला दी जाए और
वे पछताते रह जाएँ, उसकी शादी करके,
इन्सानियत के इस बाज़ार में वो देखते तो हैं बाप बेटे साथ-साथ बिकते,
नकली ऊँचाइयों और असली नीचाइयों के बीच सच,
अब फासले रह गये हैं बस हाथ भर के!

मैं क्या करूँ? देखता रहूँ, दुआ करूँ या
उस लड़की का दर्द एक कागज पर लिखूँ?
लिखूँ मैं सही हिसाब उसकी विवशताओं का,
समाज की बिडम्बनाओं का, सही हिसाब लिखूँ,
क्या लिखूँ? इसके आगे और क्या लिखूँ?
मैं इसके आगे क्या लिखूँ?