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हेलन किलियोपेट्रा और नेपथरी / महेश सन्तोषी

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हेलन किलियोपेट्रा नेपथरी, इनके लिए शहंशाहों ने लड़ाइयाँ लड़ीं,
इन्हें खोने या पाने के लिए बड़ी-बड़ी खून की नदियाँ बहीं।

इतिहास इनका तवज्जो से जिक्र तो करता है, पर यह सवाल नहीं पूछता कि
तीन औरतों के लिए लड़ाइयाँ लड़ी ही क्यों गयीं?
किसी खास औरत या खासमखास औरत के लिए, हजारों आदमियों के सिर कटे,
हजारों औरतें विधवा हुईं, किसी के पास इसका कोई जवाब नहीं है।
इतिहास वैसा का वैसा वही है, उसके हर पेज की छपाई भी सही है
औरतों पर क्रूरताएँ या औरतों के लिए क्रूरताएँ,
आम बात है, होती है, होती ही रही है।

यह सवाल मैं क्यों पूछता हूँ? किससे पूछता हूँ?
पीढ़ी-दर-पीढ़ी हर सभ्यता ने, यह देखी सुनी सही है,
औरत पर पूँजीवादिता; किसी खास औरत की पूजा की इन्तिहा!
क्या यही स्थिर सत्य है इस सोच की? यही है हमारी थोथी मानसिकता?
और क्या कभी खत्म नहीं होगी, हमारे सामाजिक सोच की
यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी पलती दरिद्रता!