मॉरीशस: एक याद / महेश सन्तोषी
दूर कहीं क्षितिजों में, सतरंगी रेखा है,
एक द्वीप लहरों की अँजुरी में लेटा है।
याद अगर आये मन, छूना मत चाहों से,
और अगर उड़ना हो, पूछना हवाओं से!
बरसे हों इन्द्रधनुष या फुहार रंगों की,
धरती से अम्बर तक झालरें उमंगों की।
रंग सौ बिखेरे हैं, समय के चितेरे ने,
खेतों, पहाड़ों पर, सागर के घेरे में।
डूबा मन अगर उभर आये अथाहों से,
नापना न सीमाएँ सीमित दो बाहों में।
और अगर उड़ना हो, पूछना हवाओं से!
बहुत पास आँखों के, दूर एक सपना था,
एक देश गैरों का, एक देश अपना सा।
सारे तट, बन्दी हैं, बँट गयीं, हवाएँ हैं,
सागर ही सागर है, जल है, सीमाएँ हैं,
लहरों की प्राचीरें चक्र वर्जनाओं के,
तोड़ना न बन्धन मन, काल के, दिशाओं के।
और अगर उड़ना हो, पूछना हवाओं से!
ओस से नहाये हैं, तप्त स्वप्न रेतों के,
यादें उग आयी हैं आस-पास खेतों के।
बीता कल क्षितिजों के छोरों तक बिखरा है,
अम्बर-सा विस्तृत है, आँखों-सा संकरा है।
अनगिन हों आमंत्रण साँझ के, निशाओं के,
खोलना न बोझिन मन, पाल कल्पनाओं के।
और अगर उड़ना हो, पूछना हवाओं से!