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सूरजमुखी: एक ज़िन्दा फलसफा / महेश सन्तोषी

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तुम किसी सूखी नदी की रेत की तरह नहीं थे,
तुम, किसी क्षत-विक्षत पर्वत के अवशेष की तरह भी नहीं थे,
फिर अतीत को पीठ क्यों नहीं दिखाते? पीठ पर क्यों लादे हुए हो?

क्या तुमने समय से, सूरज से, सूरजमुखी से कुछ भी नहीं सीखा?
समय साक्षी है, सूरजमुखी फूलों में सूरज का सबसे सुन्दर दर्पण है,
उसके अंगों, रंगों और उमंगों में ऊर्जा ही ऊर्जा है,
वह एक जीवित दर्शन है, ज़िन्दा फलसफा है!

तुम ईश्वर को बराबर तरह-तरह के फूलों से पूजते रहे,
पर खुद तुमने फूलों को देखा भर, कभी पूजा नहीं,
तुम सूरजमुखी का फूल देखते ही रह गये,
सूरजमुखी से तुमने कभी कुछ सीखा नहीं!