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एक नगर / अनुभूति गुप्ता
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अख़बार ही अख़बार
पन्ने-दर-पन्ने
कतरे हुए
उधड़े हुए
सिलवटों से भरे पड़े हैं
मटमैले कपड़े पहने हुए
नगर के
कोने-कोने में
बिखरे हुए से हैं।
एक नगर अख़बारों का
सच और झूठ के मध्य
फँसा हुआ
सालों साल
खूबियाँ-खामियाँ
बराबर तोलता हुआ
दरखास्त करता है
कलम की स्याही से
अनुभवों के ढेर पर
एक सच्ची ख़बर को
खोजने की।