भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मकानों की छतें / अनुभूति गुप्ता

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:52, 2 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनुभूति गुप्ता |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ मकानों की
छतें पुरानी ही सही
पर
वहाँ
मनोज्ञ पावन प्रकाश
बिखरा हुआ नजर आया,
अनुभवी शाखाएँ
उन मकानों की
निगरानी
करती हैं
बाहरी शत्रुओं से,
अड़चनें घात लगाये
बैठी हैं
कि-
कब इन मकानों में
रहने वालों के
आपसी रिश्तों में
दीमक लगनी शुरू होगी
मन निरुत्साहित होगा
शंकाओं
निराशाओं
उलझनों से घिरेगा
चिन्ता में अकुलायेगा

तब वो,
एकान्त क्षणों में
घोर सन्नाटों को
चीरते हुए
छलपूर्वक प्रहार करेगीं
और
उनके जीवन में
ग़लतफ़हमी का
दर्दनाक झंझावात
ले आयेगीं।