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दरिद्रता और मैं / अनुभूति गुप्ता

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न सिर पर छत है
न कोई सगा-सम्बन्धी है
न ठोकर लगने पर
सम्भालने को कोई है,

न घर चलाने को धन है
मन व्यथित निर्बल निर्धन है...


इस अरबों की
आबादी वाले हिन्दुस्तान में
मेरे पास सहेजने लायक है
तो बस

खाली पेट
जनम लेने वाला नसीब
भूखमरी की चपेट से
निढाल जीवन
और...

दूर-दूर तक,
दरिद्रता के पद्चापों की
ध्वनियों पर
चलता हुआ
एक लाचार आदमी
यानि ’मैं’।