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दीया और बाती / अनुभूति गुप्ता

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रात्रि-तिमिर
में
दीया और बाती
बिन
सकुचाये
घबराये
संग-संग
उदीप्त होते हैं,
सुख-दुःख की
देहरी पर
एक दूसरे के पूरक
बनने को।
जो
दीये को सन्तुलन
है देती
प्रतिपल
अविचल
वही बाती
दुःख को कंधों पर है
ढोती
सुख देने को।