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बरसात हुई / अनुभूति गुप्ता
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देखो! काले बादल छाये,
जल की मोटी बूँदें लाये।
भीग रहे हैं पेड़ों के तन,
पुलकित करते हैं सबका मन।
नदिया मन्द-मन्द मुस्कातीं,
मेढक-मछली मौज मनातीं।
कागज की इक नाव बनाओ,
ठहरे जल में इसे चलाओ।
पत्तों से बूँदें झरती हैं,
टप-टप धरती पर गिरती हैं।
हरियाली छायी है वन में,
मोर नाचते हैं कानन में।
रिमझिम-रिमझिम पड़ीं फुहारें,
छुट्टी पर हैं चन्दा तारे।