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बोला देॅ रे कागा / कस्तूरी झा 'कोकिल'

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बोला दे रे कागा ननदोई अलबेला।
रहेंगे भला कैसे? फागुन अकेला।
पिया परदेशिया,
अबहूँ नैं अयलखिन।
आबे केॅ चिठिया,
एगो नैं पठैलखिन।
पवन गमकौवा देखाबे रोज खेला।
बोला दे रे कागा ननदोई अलबेला।
रहेंगे भला कैसे? फागुन अकेला।
फूले फूल भौंरा
गुन-गुन-गुन गाबै।
ढोलक मंजीरा सुन
नींदो नहीं आबै।
तन-मन में आग लगे भारी झमेला।
बोला दे रे कागा ननदोई अलबेला।
रहेंगे भला कैसे? फागुन अकेला।
कोयल केॅ तान सुनीं
मोॅन बौराबै छै।
रही-रही पछुवा
आँचल उड़ाबै छै।
मखमलिया सेज लागै सूइया कँटेला।
बोला दे रे कागा ननदोई अलबेला।
रहेंगे भला कैसे? फागुन अकेला।