रोहिण गेलै / कस्तूरी झा 'कोकिल'
रोहिण गेलै, मृगशिरो गेलै, आबी गेलै अदरा।
ऊँट मुँहों में जीरा लागै, बूँदा-बूंदी बदरा।
केनाँक होतै खेतीवारी?
कुछ नैं सूझै छै।
सरकारी झुनझुना सुहावन
सब कोय बूझै छै।
माथा पर मड़राबेॅ लागलै, भारी सुखाड़ केॅ खतरा।
रोहिण गेलै, मृगशिरो गेलै, आबी गेलै अदरा।
ऊँट मुँहों में जीरा लागै, बूँदा-बूंदी बदरा।
नेता जी सें मिलना मुश्किल,
मुखिया जी कनबहरोंॅ।
अफसर दलाल सें घिरलोॅ हरदम,
कौनंे सुनतै हमरोॅ?
बिकट समस्या आगू में छै डेग-डेग पर लफरा।
रोहिण गेलै, मृगशिरो गेलै, आबी गेलै अदरा।
ऊँट मुँहों में जीरा लागै, बूँदा-बूंदी बदरा।
मोॅ नमारी केॅ बैठला सें तेॅ
डूबथौं आपनें नैया।
विषधर सबकेॅ फन कूटैले।
आबोॅ बनोॅ कन्हैया।
तभिये बचथौं जान कीमती, साथें-साथें चदरा।
रोहिण गेलै, मृगशिरो गेलै, आबी गेलै अदरा।
ऊँट मुँहों में जीरा लागै, बूँदा-बूंदी बदरा।