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खोपड़ी रेगिस्तान / कस्तूरी झा 'कोकिल'
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गरमीं से खोपड़ी रेगिस्तान होय गेलै।
नोंचतें-नोंचतें घमची बिहान होय गेलै।
रही-रही नोचै छै
सौंसे बदन।
दिन रात सूझै छै,
नीला गगन।
अदरोह में बदरा बेइमान होय गेलै।
नोंचतें-नोंचतें घमची बिहान होय गेलै।
कपड़ा सोहाबैनैं,
चूयै छै घाम।
बिछौनाँ सें रगड़ी पीठ
लेहू लोहान।
बरछी लेॅ केॅ रौदा हैमान होय गेलै।
नोंचतें-नोंचतें घमची बिहान होय गेलै।
गरमीं से खोपड़ी रेगिस्तान होय गेलै।
अदरौह में बदरा बेइमान होय गेलै।