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सुनीं लेॅ रुकी केॅ / कस्तूरी झा 'कोकिल'
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सुनीं लेॅ रूकी केॅ कारी बदरिया।
बरसी जा आबी केॅ हमरे नगरिया।
पियासली छै धरती,
पियासलोॅ पेखरू।
पियासली छै गैइया,
पियासलोॅ छै लेरू।
नदियो छै सुखली, फाटली पोखरिया।
बरसी जा आबी केॅ हमरे नगरिया।
सुनीं लेॅ रूकी केॅ कारी बदरिया।
घैलोॅ ओघड़ैलोॅ छै,
तरसै छै घरनी
भनसा केनाँ होतै जी?
जीते जी मरनी।
आरो जा आबी केॅ हमरे नगरिया।
बरसी जा आबी केॅ हमरे नगरिया।
सुनीं लेॅ रूकी केॅ कारी बदरिया।
कहाँ जाँव? कीकरियै?
कानै छै बच्चा।
सरकारो कंुभकरनी,
नेताजी लुच्चा।
घुरी-फिरी तोरैह पर अटकै नजरिया।
बरसी जा आबी केॅ हमरे नगरिया।
सुनीं लेॅ रूकी केॅ कारी बदरिया।