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सुनीं लेॅ सुनीं लेॅ / कस्तूरी झा 'कोकिल'
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सुनीं लेॅ-सुनीं लेॅ साँझकी बदरिया।
बरसी केॅ, ठहरी जा, हमरे नगरिया।
स्वागत में जागी जैते,
दरबाजा पर ढोल।
आँगन में घरनी केॅ
घुँघरू अनमोल।
पनघट पर नाची केॅ नपकी बहुरिया।
सुनीं लेॅ-सुनीं लेॅ साँझकी बदरिया।
बरसी केॅ, ठहरी जा, हमरे नगरिया।
विरहिन केॅ भाग जागतै,
अयतै सजनमा।
अगहन में धान काटतै,
फागुन गउनमा।
नाचतै छमादम मिलाय केॅ नजरिया।
सुनीं लेॅ-सुनीं लेॅ साँझकी बदरिया।
बरसी केॅ, ठहरी जा, हमरे नगरिया।
ई रं निरमोही
भेल हौ तौं कैहिनें?
कहीं भार कहीं आग
बरसै लोह तों कैहिनैं?
केनाँकॅ आनथिन जी! धानी चुनरिया?
सुनीं लेॅ-सुनीं लेॅ साँझकी बदरिया।
बरसी केॅ, ठहरी जा, हमरे नगरिया।