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सावनीं फुहार में / कस्तूरी झा 'कोकिल'

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सावनीं फुहार में
गमकै छै बेला।
ऐहनाँ बड़ा मुशकिल छै
रहना अकेला।
घटा सें पूछला पर
कुच्छोॅ नैं बोलै छै।
प्रियापियारी केॅ
पता नैं खोलै छै।
पिछलका सावन रोॅ
पड़ै छै याद।
कैहिनों मनभान छेलै
अद्भुत सबाद।
आबेॅ नैं संभव छै,
विरही केॅ जीवन छै।
दिन रात हुकरै केॅ
कटार मार सीजन छै।
राहै पर रहैं छै,
रातदिन आँख।
उड़ी केॅ जैबै कहाँ?
कहाँ छै पाँख?