भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

होगा फिर से मन में विहान / राहुल शिवाय

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:15, 9 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहुल शिवाय |अनुवादक= |संग्रह=आँस...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

होगा फिर से मन में विहान।।

जीवन की अंधी राहों में
जो सपने थे वे दफ़्न हुए,
विधि की निष्ठुर झंझाओं में
हैं नीड़ नेह के भग्न हुए।
लेकिन उर मत होना अधीर
गाते रहना तुम मधुर गान।
होगा फिर से मन में विहान।।

है प्रेम-हीन अंतर उजड़ा
एकाकीपन की छाया है,
उर में उद्वेलित पीड़ा है
मन नेह-कुसुम मुरझाया है।
लेकिन पतझर बीतेगा कल
छेड़ेगी कोयल पुनः तान।
होगा फिर से मन में विहान।।

माना रूठा है प्रेमिल-मन
सूनी परिणय-पथ पर डोली,
जिसने था मुझसे प्यार किया
उसके बिन रिक्त हुई झोली।
लेकिन कल वह फिर आएगी
पायेगा उर यह पुनः मान।
होगा फिर से मन में विहान।।