दरवाजे से
कमरे में आ गयी है
धूप
धूप
सुबह की
भर उठा है उजास से
कमरे का कोना-कोना
हर चीज अब
देख सकती हूँ
पहचान सकती हूँ
सरलता से
सब कुछ
अपने करीब पाती हूँ
फुदक कर घुस आई
धूप के
चमकीले प्रकाश में
धूप जो
फुदक रही है निश्शंक
चहक रही है
गौरेया है
मेरे आँगन की
अभी है अभी
चली जाएगी बिना बताए
घुस आएगा फिर वही
विस्थापित अंधेरा
घेर लेगी दबी हुई सीलन वही
उमस वही
उदासी वही
यह धूप है जो
कभी-कभी आती है
कमरे का जी बहलाती है फिर
चली जाती है
बचाना ही होगा इस
धूप को।