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जब पहली बार / दुःख पतंग / रंजना जायसवाल
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प्रेम करना
ईमानदार हो जाना है
यथार्थ से स्वप्न तक ..समष्टि तक
फैल जाना है
त्रिकाल तक
विलीन कर लेना है
त्रिकाल को भी... प्रेम में... अपने
जी लेना है अपने
प्रेमालाम्ब में सारी कायनात को
पहली बार देखना है खुद को
खोजना है
खुद से
बाहर
मन को छूता है कोई
पहली बार
बज उठती है देह की वीणा
सजग हो उठता है मन-प्राण
चीजों के चर-अचर जीव के ..जन के
मन के करुण स्नेहिल तल तक
छूता है कोई जब पहली बार
सुंदर हो जाती है
हर चीज
आत्मा तक भर उठती है
सुंदरता
अगोरती है आत्मा अगोरती है
देह
देखे कोई नजर
हर पल हमें।