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जबकि तुम / दुःख पतंग / रंजना जायसवाल
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जबकि तुम
चले गए हो कब के बिखेर कर
जिंदगी के कैनवस पर ताजा रंग
घर में तुम्हारी गंध
फैली है अभी भी
बन ही जाती है चाय की दो प्यालियाँ
तुम्हें टटोलने लगते हैं हाथ
नींद में अभी भी
जबकि चले गए हो तुम कब के
सपनों से डरी मैं तलाशती हूँ
तुम्हारा वक्ष
तपते माथे पर
इंतजार रहता है
तुम्हारे स्पर्श का जबकि तुम
चले गए हो कब के
अब जब कि तुम चले गए हो
नहीं टपकती तुम्हारी बातें
पके फल की तरह
नहीं आते खाने पंछी छत पर
चावल की खुद्दी नहीं बिखेरी जाती
झुक गए हैं फूलों के चेहरे
झर गया है पत्तियों से संगीत
नहीं उतरती
अब कोई साँवली साँझ
आंगन की मुंडेर पर।