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देखा है / दुःख पतंग / रंजना जायसवाल
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आकाश कितने रंग ओढ़ लेता है
भर जाता है
भूरे-काले बादलों से कैसे
पहन लेता है इंद्रधनु कभी बिजली-सा
बिहँसता है
देखा है?
तपिश चाहे रहे कितनी
रात को मुस्कुराता है
बन जाता है शीतल
चाँद अमृत बरसाता है
धरती पर
देखा है?
कैसे सजती-सँवरती है धरती
पहनती है
ऋतुओँ की साड़ियाँ
जब प्रेम में होती है
रहती है हरी-भरी
लहलहाती है
आकाश के लिए
समय कैसा भी हो
देखा है?