भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं नागरिक हूँ / दुःख पतंग / रंजना जायसवाल

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:35, 12 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना जायसवाल |अनुवादक= |संग्रह=द...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं नागरिक हूँ
सोचती हूँ
बिगड़ चुके हैं लोग और
सबको ठीक करना मुश्किल है
इसलिए मैं भी शामिल हो जाती हूँ
भीड़ में
अकेले डर लगता है मुझे

मैं नागरिक हूँ
हस्तक्षेप नहीं करती दूसरों के
दु:ख में सुख में
उनके जीवन में
तल्लीन रहती हूँ
अपनी ही जिंदगी की सफलताओं में
सफलता और सुख ही अंतिम ध्येय है
और चरम मूल्य भी
इस जीवन का

मानती हूँ
सशक्त को बड़ा
छोटा
अशक्त को
बड़ा बनना है मुझे
डर लगता है
छोटे लोगों से।