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आजादी के लिए / दुःख पतंग / रंजना जायसवाल
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थक गए हैं जवान
लड़ते-लड़ते
हुक्मरानों की जिद की लड़ाई
लौटना चाहते हैं अपने बैरकों में
घरों में वापस जहाँ
आतुर प्रतीक्षा में खड़ी है
माथा चूमने के लिए
बूढ़ी माँ
बेचैन है पिता
पत्नी की युवा-कामनाएँ
बेचैन हैं
तड़प रहे हैं खब्ती हुक्मरानों की
जिद के लिए लड़ते जवान
अपनी आजादी के लिए।