सुन्दर मन्दर गिरि....
क्षुब्ध गरूड़जी कै नारायण समझाय देलकै
शिव-मधुसूदना के अन्तर मेटाय देलकै
बेलपात, गंगाजल पुजावै मधुसूदना॥51॥
सुन्दर मन्दर गिरि....
मधुसूदन शिव भेलै, त्रिभुवन गदाल गेलै
गंगाजल, बिल्वपत्र पूजन उपहार धैलै
सभै मनकामना पुरावै मधुसूदना॥52॥
सुन्दर मन्दर गिरि....
दैत्य एक त्रिपुरासुर शिवलोक पहुँची गेलै
औढरदानी, त्यागी शिव तुरन्त मन्दार ऐलै
त्रिपुरासुर बधवा करवावै मधुसूदना॥53॥
सुन्दर मन्दर गिरि....
मंदर, मधुसूदना के महिमा अपरवा रे
त्रिपुरासुर दैतवा के भै गेलै उद्धरवा रे
त्रिपुरासुर स्वर्ग भेजावै मधुसूदना॥54॥
सुन्दर मन्दर गिरि....
खुशी-खुशी देवगण नरैना के लिग ऐलै
मन्दराचल पर शिव की स्थापना की बात कैलै
त्रिपुरेश्वर मन्दर बैठावै मधुसूदना॥55॥
सुन्दर मन्दर गिरि....
कातिक पूर्णिमा दिनमा बाराह के जे पूजा करै
पापहरणी स्नान करी मन से जे ध्यान धरै
वोकरा बैकुण्ठ पठावै मधुसूदना॥56॥
सुन्दर मन्दर गिरि....
पापहरणी किनरा पै मुर्दा जे दाह करे
मुर्दा के भसमा कै पावनी प्रवाह करे
सद्गति वोकरा दिलावै मधुसूदना॥57॥
सुन्दर मन्दर गिरि....
एक शंखकुण्ड शोभे मन्दर भूधर अन्दर
वहीं पै विराजै एक शिला-भग मनहर
कामख्या कै सिद्धि दिलावै मधुसूदना॥58॥
सुन्दर मन्दर गिरि....
सिद्धि के जगहवा रे भेलै वही शिला-भग
सिद्धपीठ छीकै मन्दर जानै छै सकल जग
तन्त्र-मन्त्र सिद्धि करावै मधुसूदना॥59॥
सुन्दर मन्दर गिरि....
मन्दर के पूरब दिशि मन्दिर लखदीपा सोहे
छोटी-छोटी तखिया रे भगतिन के मन मोहे
दीप जारी लछमी पुजावै मधुसूदना॥60॥