काल से बाहर / दिनेश जुगरान
संवेदनाओं के द्वार खुलेंगे
आकस्मिक
जब मैं पहुँचूँगा समुद्र के उस तट पर जहाँ
कोई पुराना गीत
नए संदर्भों में
दे जाए नए अर्थ
नए रहस्यों के
छा जाए नए स्वाद
अनजाने बन्दरगाहों में
कोहरों में लिपटा अतीत
ले एक नई आकृति
जो जोड़े मुझे बचपन के
किसी आनन्द के क्षणों में
निकले आँसुओं स
हर विदा भले ही
रेतीले तटों से शुरू होती हो
ले जाती है किसी
दैविक धुंध की ओर
समय से मैं
कभी नहीं करता कोई प्रश्न
न कोई आग्रह
कि रखना मुझे अपने ही आसपास
तट की लहरें मन को
करें उद्वेलित
पल भर को लेकिन
उफनते समुद्र के आगोश का
आनन्द स्थाई है
हर विदा लगती है
एक नया संकल्प
संयोग एवं घटनाएँ
करते मुझे प्रेरित
देते अनुभव अपरिमित
दर्द सत्य है
जब वह
तुम्हें निकाले काल से बाहर
पाटे उस अन्तराल को
जो स्थित है वर्तमान में ही
अर्थहीन नहीं है यह दुनिया
तुम्हारी ही अभिव्यक्ति है