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रात के तीसरे पहर का नज़ारा / दिनेश जुगरान
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कुछ शब्दों में ही
गुज़र गया पूरा दिन
और चाँद
लड़ता रहा रात भर
पास के कंटीले तारों से
और बादलों से माँगता रहा
सिर छुपाने की जगह
हवाओं में था
उखड़ी हुई साँसों का शोर
और डरे हुए भयभीत पत्ते
चुपचाप
एक टूटे पुल के नीचे
सहमे
देखते बन्द आँखों से
रात के तीसरे पहर का नज़ारा