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यह अंधकार सार्वजनिक है / दिनेश जुगरान
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इस यात्रा में सड़कें छोड़ गई हैं निशान
मेरी पीठ पर और इच्छाएँ आश्वासन उम्मीदें
मेरी खाल को नोच कर नंगा कर चुके हैं
यह अंधकार सार्वजनिक है
तुम्हें कुछ दिखता नहीं अनुभव और लम्बे इंतज़ार में
कुछ फ़र्क़ नहीं बचा मुझे नहीं है इंतज़ार किसी भी घटना का
अब
लगता है यह पृथ्वी तुम्हारी नहीं है
इसीलिए सदियों से सभी फै़सले एकतरफ़ा हुए हैं
वैसे भी सारी तरकीबें तुम्हारी उन्हें बचाने की हैं
जो विरोध और भूख का एक ही इलाज़ जानते हैं
मार दो दोनों को
मुझे मालूम है ज़्यादातर लोग किसी अवतार की प्रतीक्षा में
आँखें मींचे बैठे हैं और शेष बचे हुए लोग
इन आँखों को लगातार बंद रखने के प्रयास में लगे हैं