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आजादी / दुःख पतंग / रंजना जायसवाल

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तुम्हारी देह
कच्छा-बनियान से लेकर बीड़ी-तम्बाकू तक पर
मोहित तुम
कैसी है यह आजादी
जिसे भोग रही हो स्त्री?
चल देना किसी भी मर्द के साथ
दिखना टी.वी.सीरियलों,फिल्मों में
जैसे कि कोई बिछा हुआ बिस्तर
तत्पर अभिसार के लिए
खोजती हुई मर्द की छाती में
सुरक्षा और
खर्च करती हुई खुद की खुद्दारी को
चांदी के चमकते चंद टुकड़ों के लिए
क्या यही है आजादी?
तुम्हारा स्वप्न?
मस्ती और ऐश्वर्य की इस मर्दवादी
दुनिया ने
क्या दिया है तुम्हें आजादी के नाम पर
कामातुर आँखों की तृप्ति को समर्पित
तुम्हारी देह में कहाँ है
आत्मा
क्या है तुम्हारी पहचान
पूँजी के बाजार में स्वतंत्र तुम
सोचो कैसी है यह आजादी?