भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बूढ़ी माँ / दिविक रमेश
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:58, 12 मई 2017 का अवतरण
बूढ़ी माँ ने धोकर दाने
आँगन में रख दिए सुखाने
धूप पड़ी तो हुए सुहाने
आई चिड़ियाँ उनको खाने
आओ बच्चो आओ चलकर
बूढ़ी माँ की मदद करें हम
चलो उड़ा दें दानों पर से
बजा बजा कर ताली हम तुम
वर्ना सोचो क्या खाएगी
वह तो भूखी रह जाएगी
चिड़ियों की यह फौज नहीं तो
सब दानें चट कर जाएगी।
आओ बच्चो आओ चलकर
बूढ़ी माँ का काम करें हम
नहीं हैं बच्चे उनके घर में
चलो न चलकर काम करें हम