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रास्ता / अखिलेश्वर पांडेय

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कुछ पालतू कुक्कुर भूंकते हैं
मानो, उनकी दिनचर्या में खलल पड़ गया हो
दरवाजे के बाहर खड़ी
बछिया भी रंभाती है
मुर्गियाँ मुझे दौड़ाती हैं
मानो, कह रही हों
सुरक्षित दूरी बनाये रखो

समझ में नहीं आता
यह कच्चा-पक्का रास्ता
बस्ती में जाता है
या बस्ती से बाहर आता है
जो भी हो
यह रास्ता है अच्छा

रोटी कमाने शहर जाने वाला हर नौजवान
और गांव की हर बेटी को दूल्हा
आखिर इसी रास्ते तो जाता है