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बिना सहारे / तेज प्रसाद खेदू

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बिना सहारे हमने
बीते हुए समय को मुट्ठी में
कैद कर रखा है।
और आसमान की ओर देखते हुए
चुपचाप बैठे हैं।
हम कुछ सोचते हैं
पर कह नहीं पाते।
और व्यक्त हो जात हैं वे जिनका
कोई वास्ता नहीं होता।
हम जब हँसना चाहते हैं।
तब आस-पास का माहौल देखकर
हमारी आँखों में छल-छला आता है पानी।
और हम एक मशीन की तरह
पूरी करते रहते हैं
अपनी दिनचर्या
निभाते रहते हैं
अपना दायित्व
और मुट्ठी में कैद
बीतता रहता है समय
चुप-चाप।

मैं करता हूँ
न राग है न लय
फिर भी वाक्या बनाता
मन के तार छेड़ कर
कविता सुनाता हूँ
दो हाथांे के दम पर
ये संसार चलाता हूँ
हाथों की चन्द लकीरों को
पसीने से लिख जाता हूँ
दर्द हो चाहे कितना भी
गीत खुशी के गाता हूँ
रहूँ चाहे जिस हाल में
न कभी हारता हूँ
बुरे से घबड़ाकर मैं
पीठ नहीं दिखाता हूँ
जो कुछ भी दिया तूने
सिर्फ वही दीप जलाता हूँ
आ सकूँ काम किसी के
सपने ये सजाता हूँ
माँ तेरा बालक हूँ
तेरे बन्दन में शीश झुकाता हूँ।