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दीप मेरे टिमटिमाए / देवानंद शिवराज

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दीप मेरे टिमटिमाए
प्यार इसमें इतना भरा,
लगता कभी कम न होगा।
और इसके जलते रहते,
अब मुझे कुछ गम न होगा।
किन्तु अब तो बुझ रहे हैं,
अन्त तक न साथ आते।।

ज्योति तुम्हारी सब पाई,
पथ पर हैं चल रहे।
डगर का तम दूर करने,
दीप लाखों जल रहे।
डूबता अब मन मेरा,
और बीते क्षण सताते।।

हर अमावस की निशा को,
मान लेता मैं दिवाली।
फिर भी आशा बेल सूखी,
सो रहा है भाग्य माली।