भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अपनी गलती दूर करो / धीरज कंधई
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:20, 26 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धीरज कंधई |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatSurina...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अगर हुई गलती तुमसे
तो उसको स्वीकार करो
हर गलती उन्नति की सीढ़ी है
चढ़कर उसको पार करो।।
गलती करता
इसीलिए तो मनुष्य
बड़ा बन सकता
गलती दूर किए बिन
कोई कब आगे बढ़ सकता।।
गलती हुई इतनी
पर दुखी न होना
जो बार बार हो गलती
तो सचमुच लज्जा की बात है।।
अपनी गलती,
स्वयं नहीं दिखती, कोई और देखता है
कौन गलती नहीं करता
गलती तो मनुष्य का स्वभाव है।