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कंत्राकी / राज मोहन

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सात समन्दर पार कराए के
एक नवा देस के सपना देखाए के
कैसे हमके उ भरमाए के
लेगइल दूर सरनाम बताए के

कपड़ा लत्ता खरचा गहना
गठरी में बान्ह के सब आशा
किरपा सिरी राम के पुट्ठी में
दूसर के सहारा पानी पे
कभी दिल घबराए, थारा पछताए
सायत अब जाए के दिन बढ़िया आए
आंच सुरपज के कुछ हमके भी
भाग में मिली, बरसन तरसाए के

दुई तीन महीन्ना जहाज पे
रिस्ता नाता तो बन ही जाए
कंत्राक जोगाय के थाली में
एक एक बिचार दिमाग में आए
उ देस में कैसन लोग भेंटाय
खेती बारी बढ़िया सैराय
लौटब गाँव अपना पैसा जमाय के

कुछ दिन सरनाम में रह के भाई
धीरे धीरे आदत पर जाय
अब इतना दिन मेहनत कर के
सब छोड़ छाड़ वापस के जाए
जीव बोले अब हिंया रह जाए
सरकार के बल पे खेत मिल जाए
मन के कोना में इ सपना बाकी
रहिगे एक दिन गाँव अपने जाय के