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स्वागत / श्रीनिवासी
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वसन्त साड़ी में
तू मेरी प्रेयसी
शाम के सोने पथ पर
तू उपस्थित है।
उठित गया दिल मेरा
नीली धुँधलाइ में
अनोना वर्षों
खाली स्वप्न के सदृश
मेरे जीवन में
उल्लिखित थे।
वसन्त साड़ी में
तू मेरी प्रेयसी
शाम के सोने पथ पर
तू उपस्थित है।
तेरी शक्ति से
चूर हुए तीव्र दुख के बन्धन।
मेरे देश के मोहार में
गले गले से
हृदय हृदय से
तूने आज लगाया
पाठ अनुपम मोहिनी
निज अकथ शुचि प्रेम
अपने हाथ पढ़ाया
शाम के सोने पथ पर
तू सरनामी देवी
स्वागत कमल नयन में
ओ वसन्त कुसुम-कली!